What: Ayurveda means the “science of life”. It originated in India more than 5,000 years old and is believed to be the oldest healing science in existence, from which all other systems emerged. This ancient healing system has three main focuses Healing illness, Prevention of disease and Longevity or age reversal. Ayurveda provides both curative and preventive measures towards optimal physical, mental and spiritual well-being.
The word “Ayurveda” is from the ancient Indian language, Sanskrit, and literally means “Knowledge of Life”. Inherent in Ayurveda principles is the concept that you are capable of taking charge of your own life and healing. Ayurveda is a Sanskrit term, made up of the words “ayus” and “veda.” “Ayus” means life and “Veda” means knowledge or science. The term “ayurveda” thus means ‘the knowledge of life’ or ‘the science of life’. According to the ancient Ayurvedic scholar Charaka, “ayu” comprises the mind, body, senses and the soul.
How: An Ayurvedic practitioner can get employment as medical officer/doctor at government and private Ayurvedic hospitals. One can also start his/ her own practice or open one’s own retail shop of Ayurveda medicines. They can also find employment as supervisors in ‘Panch Karma’ (Ayurvedic massage) / health centres, as tutors in Ayurvedic colleges or do research, conduct workshops, seminars and retreats. Nowadays Ayurvedic treatments are gaining much more importance.
The number of Pharmaceutical companies manufacturing Ayurvedic medicines are increasing and the medicines are getting popular even in other countries. Patients from all over the world are coming to India for Ayurvedic treatment. More and more ‘Pancha Karma Centres’ are coming up for serving the tourists especially foreigners. With the popularity of the system the demand for Ayurvedic doctors are on the rise. In some of the states in India, it has been made mandatory to appoint at least one Ayurvedic Doctor in every civil hospital. So Ayurveda graduates have a bright scope in future.
The Ayurvedic Colleges of India awards the Degree of “Ayurvedacharya” or B.A.M.S. (Bachelor of Ayurvedic Medicine & Surgery) at the bachelor level. Duration of B.A.M.S is 51/2 years/61/2 years including Internship.
Eligibility required to join B.A.M.S (Bachelor of Ayurvedic Medicine & Surgery) is Higher Secondary/P.U.C. preferably with Sanskrit or an examination equivalent there to, or Intermediate (Ayurvedic group- Physics, Chemistry, Biology and Sanskrit) of any recognised University/Board which confirms to the specifications approved by the Council. Minimum age of joining for BAMS course is 17 years.
Main entrance exams for admission to a Bachelor’s degree in Ayurveda include, All India Pre-Medical/Pre-Dental Entrance Exam’ conducted by Central Board of Secondary Examination (CBSE), Delhi. On a national level to select the candidates at an all India level (except in the states of Jammu & Kashmir and Andhra Pradesh) for admission to roughly 15% of the total seats in the colleges of each state. Pre-med entrance exam are conducted by different states on their own for domiciled candidates.
Some national level institutions where admission does not hinge on domicile status, give admission on the basis of merit in the 10+2 examination, or conducts their own entrance test for admission to BAMS courses.
Where: Ayurvedic Education in India is presently monitored by the Central Council of Indian Medicine (CCIM), (www.ccimindia.org) a Statutory Central Government body. At present there are about 154 recognized Under-graduate and 33 Post-graduate Ayurvedic Colleges in India.
Institutions: (see below)
क्याः आयुर्वेद का मतलब ’जीवन का विज्ञान’ होता है। इसकी उत्पत्ति भारत में 5000 से पहले हुई थी और इसे सबसे पुराना चिकित्सा विज्ञान, माना जाता है जिससे अन्य सभी प्रणालियों की उत्पत्ति हुई है। यह प्राचीन चिकित्सा प्रणाली मुख्य रुप से बीमारी की हीलिंग, उसके रोकथाम और दीर्घार्यु बनाने जैसी तीन चीजों पर केंद्रित रहती है। आयुर्वेद में शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए उपचारात्मक और निवारक दोनो तरह के उपाय बताए जाते हैं।
’आयुर्वेद’ शब्द प्राचीन भारतीय भाषा संस्कृत से है, और इसका वास्तविक अर्थ ’जीवन का ज्ञान’ होता है। आयुर्वेद के सिद्धांतों में निहित अवधारणा के अनुसार आप खुद अपने जीवन और चिकित्सा की देखभाल में सक्षम हैं। आयुर्वेद एक संस्कृत शब्द जो ’आयुष’ और वेद से मिलकर बना है जिनमें से ’आयुष’ का मतलब जीवन होता है जबकि ’वेद’ का अर्थ ज्ञान या विज्ञान से है। इस तरह ’आयुर्वेद’ का मतलब ’जीवन का ज्ञान’ या ’जीवन का विज्ञान’ होता है। प्राचीन आयुर्वेदिक विद्वान चरक के अनुसार, ’आयु’ में मन, शरीर, आत्मा और इन्द्रियां भी शामिल हैं।
कैसेः आयुर्वेदिक चिकित्सक सरकारी और प्राइवेट आयर्वेदिक अस्पतालों में बतौर चिकित्सा अधिकारी/डॉक्टर काम कर सकते हैं। उनके पास प्रेक्टिस शुरु करने या आयुर्वेद दवाओं की रिटेल शॉप खोलने का विकल्प भी मौजूद होता है। इसके अलावा वे ’पंच कर्म’ (आयुर्वेदिक मसाज)/स्वास्थ्य केन्द्रों में सुपरवाइजर के तौर पर भी काम कर सकते हैं या फिर आयुर्वेदिक कॉलेजों में ट्यूटर्स के तौर पर जुड़ सकते हैं या रिसर्च कर सकते हैं और वर्कशॉप्स, सेमिनार्स व रिट्रिट्स के आयोजन कर सकते हैं। आजकल आयुर्वेदिक उपचार को काफी महत्व दिया जा रहा है।
आयुर्वेदिक दवाओं का निर्माण करने वाली दवा कंपनियों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है और ये दवाइयां अन्य देशों में भी लोकप्रिय हो रही है। आयुर्वेदिक इलाज के लिए दुनिया भर के मरीज भारत आ रहे हैं। खासकर विदेशियों पर्यटको के लिए और अधिक पंच कर्म केन्द्र खोले जा रहें हैं। इस प्रणाली की लोकप्रियता के साथ-साथ आयुर्वेदिक डॉक्टरों की मांग मे भी वृद्धि हुई है। भारत के कुछ राज्यों के हर सिविल अस्पताल में कम से कम एक आयुर्वेदिक चिकित्सक की नियुक्ति को अनिवार्य कर दिया गया है। इसलिए आगे आयुर्वेद स्नातकों के लिए और उज्ज्वल भविष्य की संभावना है।
भारत के आयुर्वेदिक कालेजों द्वारा स्नातक स्तर पर ’आयुर्वेदाचार्य’ या बीएएमएस (बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसीन एंड सर्जरी) की डिग्री प्रदान की जाती है। बीएएमएस की अवधि साढ़े पांच साल की होती है जबकि इंटर्नशिप सहित इसकी अवधि साढ़े छह साल की होती है।
बीएएमएस (बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी) में दाखिले के लिए आवश्यक योग्यता हायर सेकेंडरी/पीयूसी या समकक्ष अथवा किसी ऐसे मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी/बोर्ड से इंटरमीडिएट (आयुर्वेदिक ग्रुप – भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान और संस्कृत) है जो परिषद द्वारा अनुमोदित विनिर्देशों की पुष्टि करता हो जो। बीएएमएस कोर्स में दाखिला लेने के लिए न्यूनतम आयु 17 वर्ष है.
आयुर्वेद में स्नातक की डिग्री में प्रवेश के लिए मुख्य प्रवेश परीक्षा में ऑल इंडिया प्री- मेडिकल/प्री-डेंटल प्रवेश परीक्षा शामिल है जिसका आयोजन सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंड्री एक्जामिनेशन (सीबीएसई), दिल्ली द्वारा किया जाता है। अखिल भारतीय स्तर पर उम्मीदवारों का चयन करने के लिए राष्ट्रीय स्तर (जम्मू-कश्मीर और आंध्र प्रदेश को छोड़कर) प्रत्येक राज्य के कॉलेजों की कुल सीटों के लगभग 15 प्रतिशत सीटों पर प्रवेश दिया जाता है। अधिवासित उम्मीदवारों के लिए विभिन्न राज्यों द्वारा प्री मेड प्रवेश परीक्षाओं के आयोजन किए जाते हैं।
राष्ट्रीय स्तर के कुछ संस्थान जहां पर प्रवेश अधिवास की स्थिति पर निर्भर नहीं करता है वहां पर बीएएमएस कोर्सेज में प्रवेश या तो 10़2 के मेरिट के आधार पर दिया जाता है या फिर वहां पर प्रवेश परीक्षाओं के आयोजन किए जाते हैं।
कहांः भारत में आयुर्वेदिक शिक्षा की मॉनिटरिंग फिलहाल सेंट्रल कांउसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन (सीसीआईएम),(ूूूण्बबपउपदकपंण्वतहद्ध द्वारा की जाती है जो एक संवैधानिक सेंट्रल गर्वमेंट बॉडी है। फिलहाल भारत में लगभग 154 अंडर ग्रेजुएट और 33 पोस्ट-ग्रेजुएट मान्यता प्राप्त आयुर्वेदिक कालेज हैं।
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