Career in Police Services / पुलिस सर्विसेज में करियर

What: The Police force in any country is entrusted with the responsibility of maintenance of public order and prevention and detection of crimes. A career in Police or Law Enforcement Service holds huge prospects for courageous and dedicated candidates. The constant increase in crime rates, and the resulting security conscious society, has increased the demand for police jobs in India and across the world. It has opened a lot of opportunities for those who are ready to serve the country in police force.

The Indian Police Service [IPS] is primarily concerned and involves with maintenance of Law and Order in the country. This is the premier uniformed and respectable civil service in the country. An I.P.S officer is the one who works for both the Central and State Governments. One can serve the State Government in various capacities that are ranging from Assistant Superintendent of Police at the beginning of his career to the Director General of Police (who is the head of the police force in his state) at the stage of retirement. There are opportunities also to serve the Central Government in various organizations like the Central Reserve Police Force, Border Security Force, Central Bureau of Investigation, Intelligence Bureau, Research and Analysis Wing (RAW), etc.

At an entry level, one can expect to start his or her career with a package of Rs. 12,000.00 to Rs. 25,000.00 per month. However, experience, qualification and the quality of service are the ultimate deciding factors.

Whereas the salary may not be as high as that paid to a manager of a private company, the other allowances and intangibles more than make up for it. An Indian Civil Servant receives free health care, housing facilities, transport fares, etc. Also, there is the added assurance of job security since one is employed by the government.

How: A police official is mostly responsible for public safety and security. The officers mainly maintain the law and order, which, at the district level, is a responsibility shared with the administrative officials; crime prevention and detection; and traffic control and accident prevention and management.

In order to evenly fulfil these functions with greater efficiency, this service is divided into various functional departments, including: Crime Branch, Criminal Investigation Department (CID), Home Guards and Traffic Bureau. With changing times today however, more and more police officers are serving in departments and areas that usually are exclusively the forte of IAS officers, just as the IAS officers now at times head departments like vigilance which were exclusively given to IPS officers.

There are two ways of getting into police (I) passing Civil Service Exam (ii) state cadre police service. A candidate recruited in the police service has to undergo a tough schedule of training at the Police Academy, and within 4 to 5 years one can expect to be the Supervisory position. IPS Officers, in due course of service may expect to rise to the levels of Director General of Police in a State or DG of any other Central para-military force. Entry into IPS is through the All-India Civil Services Examination conducted by Union Public Service Commission.

Where : The recruitment process differs according to the level of the position, and direct entry, where an applicant does not have to start at the lowest level is possible. The educational requirements increase with recruitments for higher posts. The ideal qualification to get into police service is graduation.

The Superintendents of Police (SP) are recruited every year by an extremely competitive exam and are appointed into the Indian Police Service. The IPS officers are then assigned to a state force. Superintendents of Police undergo rigorous training for 44 weeks. The training programme also involves external invitees such as lawyers and management consultants. At the end of probation, they undergo an orientation training of few weeks at the assigned state’s police academy.

Lower, non-managerial positions are selected by the state or central government and are trained at Police Recruit Schools. The duration of training for inspectors is roughly a year, and for constables is nearly 9 months. The training staff for these schools are drawn from the police force itself.

क्याः किसी भी देश में सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने, अपराधों का पता लगाने और उसे रोकने की जिम्मेदारी पुलिस फोर्स को सौंपी जाती है। पुलिस या लॉ इंफोर्समेंट के क्षेत्र में साहसी और समर्पित उम्मीदवारों के लिए करियर की अपार संभावनाएं मौजूद हैं। क्राइम रेट में लगातार हो रहे इजाफे की वजह से समाज में सुरक्षा के प्रति जागरुकता आयी है जिसके परिणामस्वरूप भारत और पूरी दुनियां में पुलिस की मांग में बढ़ोत्तरी हुई है और जो लोग पुलिस फोर्स के माध्यम से देश की सेवा करना चाहते हैं उनके लिए इस क्षेत्र में कई मौके पैदा हो गए हैं।

इंडियन पुलिस सर्विस ख्आईपीएस, की मुख्य भूमिका देश के लॉ एंड ऑर्डर को बनाए रखने की होती है। यह देश का प्रीमियर यूनिफॉर्म्ड व प्रतिष्ठित सिविल सर्विस है । एक आईपीएस ऑफिसर केंद्र सरकार व राज्य सरकार दोनों के साथ काम कर सकता है। आईपीएस अधिकारी अपने करियर की शुरुआत में असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस से लेकर रिटायरमेंट तक डॉयरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस (जो राज्य में पुलिस फोर्स का हेड होता है) जैसे विभिन्न पदों पर रहते हुए राज्य सरकार की सेवा कर सकतें हैं। इसके अलावा सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स, बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स, सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन, इंटेलिजेंस ब्यूरो, रिसर्च एंड एनेलिसिस विंग(रॉ) के माध्यम से वे केंद्र सरकार की सेवा कर सकते हैं।

शुरुआती स्तर पर प्रतिमाह बारह हजार से पच्चीस हजार रुपये तक के वेतन की उम्मीद की जा सकती है। हालांकि अनुभव, योग्यता और सर्विस क्वालिटी पर काफी चीजें निर्भर करती हैं।

इस क्षेत्र में वेतन किसी प्राइवेट कंपनी के मैनेजर इतना नहीं होता है लेकिन अन्य भत्तों व सुविधाओं से उसकी भरपाई हो जाती है। इंडियन सिविल सर्वेंट को मुफ्त स्वास्थ्य सेवा, आवास की सुविधा और यात्रा भत्ता प्रदान किया जाता है। इसके अलावा सरकारी नौकरी होने की वजह से इसमें पर्याप्त जॉब सिक्योरिटी भी है।

कैसेः पुलिस के अधिकारियों पर ज्यादातर सार्वजनिक सुरक्षा और सेक्योरिटी की जिम्मेदारी होती है। अधिकारियों द्वारा मुख्य रूप से लॉ एंड ऑर्डर को मेंटेन किया जाता है और जिले स्तर पर इनकी जिम्मेदारियां प्रशासनिक, अपराध के रोकथाम और यातायात नियंत्रण व प्रबंधन के क्षेत्रों में बंटी हुई होती है।
इन कार्यो को प्रभावी तरीके से पूरा करने के लिए इस सेवा को विभिन्न विभागों में बांटा गया है जिसमें क्राइम ब्रांच, क्राइम इंवेस्टिगेशन डिपार्टमेंट (सीआईडी), होम गार्ड और ट्रैफिक ब्यूरो शामिल है। हालांकि बदलते वक्त के साथ आज ज्यादा से ज्यादा पुलिस ऑफिसर्स द्वारा ऐसे विभागों व क्षेत्रों में काम किया जा रहा है जो पहले विशेष तौर पर आईएएस अधिकारियों के लिए हुआ करती थी, आईएएस अधिकारियों की तरह अब विजलेंस जैसे विभाग अब विशेष रूप से आईपीएस अधिकारियों को दिये जा रहे हैं।

पुलिस सर्विस में शामिल होने के दो तरीके हैं (प) सिविल सर्विस की परीक्षा को पास करके (पप) स्टेट काडर की पुलिस सर्विस की परीक्षा को पास करके। पुलिस सर्विस में शामिल होने वाले अभ्यर्थियों को पुलिस एकेडमी में कठिन ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है और 4 से 5 साल के भीतर वे सुपरवाइजरी पोजिशन में पहुंच सकते हैं। अपनी सर्विस के दौरान एक आईपीएस ऑफिसर किसी प्रदेश का डॉयरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस बन सकता है या किसी अन्य सेंट्रल पैरा-मिलिट्री फोर्स में डीजी बन सकता है। आईपीएस में प्रवेश संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित अखिल भारतीय सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से होता है।

कहांः भर्ती की प्रक्रिया में पोजिशन के स्तर व डायरेक्ट एंट्री के अनुसार अंतर हो सकता है जहां अभ्यर्थी को निम्नतम स्तर से शुरुआत नहीं करनी पड़ती है। ऊंचे पदों पर भर्ती के लिए उच्च शैक्षिक आवश्यकताओं की जरुरत होती है। पुलिस सर्विस में शामिल होने के लिए आदर्श योग्यता स्नातक है।

पुलिस अधीक्षकों (एसपी) की भर्ती हर साल एक अत्यंत प्रतिस्पर्धी परीक्षा के माध्यम से होती है और उन्हे इंडियन पुलिस सर्विस में नियुक्त किया जाता है। आईपीएस ऑफिसर्स को प्रदेश के फोर्स से जोड़ा जाता है। पुलिस अधीक्षकों को 44 सप्ताह की कठोर ट्रेनिंग दी जाती है। ट्रेनिंग प्रोग्राम के दौरान वकीलों व प्रबंधन सलाहकारों को भी आमंत्रित किया जाता है। प्रोबेशन की समाप्ति के बाद उन्हे संबंधित प्रदेश की पुलिस एकेडमी में ओरिएंटेशन ट्रेनिंग दी जाती है।

लोअर व नॉन-मैनेजेरियल पोजिशन का चयन राज्य या केन्द्र सरकार द्वारा किया जाता है और पुलिस रिक्रूट स्कूल में उन्हे प्रशिक्षित किया जाता है। इंस्पेक्टर्स की लिए ट्रेनिंग की अवधि तकरीबन 1 साल की होती है जबकि कांस्टेबल्स को लगभग 9 महीने की ट्रेनिंग दी जाती है। इन स्कूलों के लिए ट्रेनिंग स्टॉफ भी पुलिस फोर्स से ही चुने जाते हैं।

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