What: The Indian film industry produces the largest number of films in the world. It produces over 800 films per year, and most these films come from Bollywood i.e. the studios of Mumbai. Regional movies are also produced in large numbers, especially in the southern states and Bengal. The industry, though generally unorganized gives employment to a large number of people. The young gets drawn to this industry mainly due to the glamour that surrounds movies and the people associated with its making, though the reality is quite different. The process of making a movie may be quite gruelling and taxing and involve a lot of repetitive work, however though the end product may give immense creative satisfaction to its makers and artists performing in it.
Other than mainstream cinema i.e. feature films, there are many different kinds of films made, like documentaries, newsreels, and advertising films. Filmmaking entails teamwork among people with varied skills. The number of people involved in making a particular film and their role and responsibilities would depend upon the type of film being made. For example making of a feature film would require a larger crew than a documentary. To understand the various activities involved in film making, functions of the major units like production, direction, sound and so on have been discussed under separate headings.
How: Formal training in filmmaking however may make it easier to understand the technical aspects of filmmaking and converting them into action. A course imparts the theories and practical knowledge of the hardware and software needed to make a film. An aspirant filmmaker is taught all aspects of filmmaking be it camera handling, recording systems, editing, productions to the post-production phases of moviemaking. To join a two-year filmmaking course in a reputed institute of India one needs to be a graduate. The eligibility test for filmmaking courses cover areas like general knowledge on films (Indian / International) and aptitude tested on parameters like assessing visuals and audios. A course trains the candidate in film direction, cinematography, editing and audiography. Adinath Das, Dean of the Satyajit Ray Film & Television Institute says, ‘On completion of a course one may take up a salaried job with a production house or work as a freelancer.’
Artistic flair, ability to work cooperatively, sense of responsibility, ability to work under pressure, great physical stamina, strong visual sense, good communication skills and for production and direction; leadership qualities, ability to bring out talent in others, creative instincts as well as managerial and administrative abilities are essential. One can also start his own venture as
Actor; Producer; Director; Editors; Cinematographer; Cameramen; Soundmen; Lighting Crews; Film Critic; Film Archivist:
Where: Perhaps researching colleges and other post secondary institutions that specialize in filmmaking would be a suitable beginning. Filmmaking is complex, expensive, and also time consuming. It can also be a big business. Potential filmmakers spend many years perfecting their profession while studying all aspects of this very popular art form. There are numerous colleges that offer professional Film making courses on bachelors, PG or as Diploma. Some of them are listed in the end.
Institutions:
क्याः भारतीय फिल्म उद्योग दुनिया में सबसे ज्यादा फिल्मों का निर्माण करता है। यह प्रतिवर्ष 800 से अधिक फिल्मों का निर्माण करता है और इनमें से ज्यादातर फिल्में मुंबई के स्टूडियो यानी बॉलीवुड से आती हैं।विशेष रूप से दक्षिण के राज्यों और बंगाल में बड़े पैमाने पर क्षेत्रीय फिल्मों का भी निर्माण होता है।यह उद्योग असंगठित होते हुए भी बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार प्रदान करता है। युवा वर्ग मुख्य रूप से फिल्मों व उससे जुड़े लोगों के ग्लैमर को देखकर इस इंडस्ट्री की तरफ आकर्षित होता है हालांकि वास्तविकता काफी अलग है। किसी फिल्म को बनाने की प्रक्रिया काफी मेहनत वाली होती है और इसमें कई दोहराव भी शामिल होतें हैं लेकिन फिल्म तैयार होने के बाद निर्माताओं और उसमें काम करने वाले कलाकारों को अपार रचनात्मक संतुष्टि प्रदान करती है।
मुख्यधारा के सिनेमा यानी फीचर फिल्मों के अलावा, वृत्तचित्र, न्यूजरील, और विज्ञापन के तौर पर भी फिल्मों का निर्माण किया जाता है। फिल्म निर्माण के लिए विभिन्न तरह के हुनरमंद लोगों को मिलकर एक साथ काम करने की जरूरत होती है। किसी विशेष फिल्म को बनाने में लगने वाले लोगों की संख्या, उनकी भूमिका व जिम्मेदारियों का निर्धारण फिल्म के प्रकार के अनुसार होता है। उदाहरण के लिए एक फीचर फिल्म को बनाने में डॉक्यूमेंट्री बनाने की अपेक्षा ज्यादा क्रू मेंबर्स की जरुरत होगी। फिल्म के निर्माण से जुड़ी विभिन्न गतिविधियों और प्रोडक्शन, डायरेक्शन और साउंड जैसी अन्य चीजों को समझने के लिए आगे अलग शीर्षकों के अंतर्गत उनपर चर्चा की गई है।
कैसेः फिल्म निर्माण में औपचारिक प्रशिक्षण लेने से फिल्म निर्माण के विभिन्न तकनीकी पहलुओं को समझने में आसानी होती है। कोर्स से फिल्म बनाने के लिए आवश्यक हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के सैद्धांतिक व व्यावहारिक ज्ञान की अच्छी जानकारी होती है। एक भावी फिल्म निर्माता को कैमरा हैंडलिंग, रिकॉर्डिंग सिस्टम, एडिटिंग व प्रोडक्शन से लेकर पोस्ट प्रोडक्शन जैसे फिल्म निर्माण से जुड़े विभिन्न पहलुओं के बारे में पढ़ाया जाता है। भारत के किसी प्रतिष्ठित संस्थान से दो वर्षीय फिल्ममेकिंग कोर्स में दाखिले के लिए ग्रेजुएट होना जरूरी है। फिल्ममेकिंग की पात्रता परीक्षा में फिल्मों (भारतीय/अंतर्राष्ट्रीय) से जुड़े सामान्य ज्ञान के साथ विजुअल व ऑडियो के आकलन जैसे मानकों का भी परीक्षण किया जाता है। कोर्स के अंतर्गत अभ्यर्थियों को फिल्म डायरेक्शन, सिनेमेटोग्राफी, एडिटिंग व ऑडियोग्राफी की ट्रेनिंग दी जाती है। सत्यजीत रे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट के डीन आदिनाथ दास का कहना है कि कोर्स को पूरा करने के बाद अभ्यर्थी अगर चाहे तो किसी प्रोडक्शन हाउस में वेतनभोगी के तौर पर काम करने या फिर फ्रीलांसर के रूप में काम करने के विकल्प को चुन सकता है।
कलात्मक स्वभाव, साथ मिलकर काम करने की क्षमता, जिम्मेदारी की भावना, दबाव में काम करने की क्षमता, अच्छी शारीरिक शक्ति, अच्छा विजुअल सेंस, बेहतरीन कम्युनिकेशन स्किल और प्रोडक्शन व डायरेक्शन के लिए लीडरशिप क्वालिटी, दूसरों के अंदर से प्रतिभा को बाहर लाने की क्षमता, रचनात्मक ज्ञान के साथ-साथ प्रबंधकीय और प्रशासनिक क्षमताओं का होना आवश्यक हैं। कोई निम्न तरीकों से अपने खुद के उद्यम की शुरुआत भी कर सकता हैः
अभिनेता; निर्माता; निर्देशक; संपादक; छायाकार; कैमरामैन; सांउडमैन; लाइटिंग क्रू; फिल्म समीक्षक; फिल्म आर्काइविस्टः
कहांः फिल्म मेकिंग के क्षेत्र में विशेषज्ञता वाले रिसर्चिंग कॉलेजों व अन्य पोस्ट सेकेंड्री संस्थानों से शुरुआत करना उपयुक्त होगा। फिल्मों का निर्माण जटिल व महंगा होता है और इसमें काफी समय भी लगता है। यह एक बड़ा बिजनेस भी हो सकता है। भावी फिल्म निर्माता इस बेहद लोकप्रिय कला के सभी पहलुओं के अध्ययन करने व खुद को निखारने में कई साल बिताते हैं। फिलहाल कई कॉलेजो द्वारा बैचलर्स, पीजी या डिप्लोमा के तौर पर फिल्ममेकिंग से जुड़े विभिन्न कोर्सेज की पेशकश की जा रही है । इनमें से कुछ कॉलेजो की सूची यहां दी गई है।
संस्थानः
PROGRAMS / COURSES IN FILM MAKING:
INSTITUTES:
DISCLAIMER: We at MyLakshya (SimplifyCareer) have made extensive efforts to ensure that the content included in this website is accurate and updated. We cannot guarantee that the information is free of errors or omissions. Nor can we guarantee that it will achieve any specific purpose. In other words, WE ARE PROVIDING THE INFORMATION TO THE STUDENT “AS IS” WITHOUT WARRANTIES OF ANY KIND. WE DISCLAIM ALL OTHER WARRANTIES AND CONDITIONS, EXPRESS OR IMPLIED. We are not liable for any type of damages arising out of the use of or inability to use the information. The end user agrees that our liability for any kind of damages, no matter what they are or who caused them will not exceed the counselling fees paid to us.